Thursday, 26 February 2015

भूमि अधिग्रहण विधेयक (बिल) क्या है?

भूमि अधिग्रहण विधेयक ज़मीन के अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों को एक ही क़ानून के तहत लाए जाने की योजना है। वर्ष 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पास किया था। जिसमें किसानों के हित के लिए कई निर्णय लिए गये थे। फिलहाल भारत में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है।

29 अगस्त, 2013 को लोकसभा से पारित होने के बाद इस विधेयक को 4 सितंबर, 2013 को राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में बिल के पक्ष में 131 और विरोध में 10 वोट पड़े वहीं लोकसभा में 216 पक्ष में और 19 मत विरोध में पड़े थे।

राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक 119 साल से चल रहे ब्रिटिश हुकुमत वाले भूमि अधिग्रहण बिल की जगह ले लेगा। एक सदी से चल रहे भूमि अधिग्रहण बिल की कई खामियां को इसमें सुधारा गया है।

आइये अब जा‍नते हैं, यूपीए सरकार और मोदी सरकार के अध्यादेश में अंतर क्या है?

यूपीए सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश
जबरन अधिग्रहण नहीं – किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता था। इसके लिए गांव के 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी थी।

5 वर्ष तक इस्तेमाल नहीं करने पर भूमि वापसी का प्रावधान – अधिग्रहित भूमि पर अगर 5 वर्ष में विकास नहीं हुआ तो वही भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की भी व्यवस्था की गई थी।

बंजर भूमि का ही अधिग्रहण – बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई थी।

अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट जा सकते थे – 2013 के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों पर 5 साल हो गए हैं, सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक ज़मीन को वापस मांग सकता है।

मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश

2014 में आयी मोदी सरकार ने एक नया अध्यादेश जारी किया और 2013 के कानून की कई व्यवस्था को बदलते हुए नये संसोधन किये–

सहमति जरूरी नहीं – अब किसानों की सहमति जरूरी नहीं। नए कानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है।

भूमि वापसी का कोई प्रावधान नहीं – अगर सरकार ने जमीन लेने की घोषणा कर दी और उस भूमि पर कोई काम शुरू हो या नहीं यह जमीन सरकार की हो जाएगी।

उपजाऊ एवं सिंचित भूमि का भी अधिग्रहण – यूपीए सरकार में यह व्यवस्था थी कि सरकार खेती योग्य जमीन नहीं ले सकती लेकिन नये अध्यादेश के मुताबिक सरकार खेती लायक और उपजाऊ जमीन भी ले सकती है।

अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट नहीं जा सकते हैं – अगर सरकार किसी की जमीन ले लेती है तो वह इसके खिलाफ किसी भी कोर्ट में सुनवाई के लिये नहीं जा सकता।

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